व्यंग्य
ये जो नया टेंशन है (व्यंग्य)
ऊहापोह से भरे इस दौर में आदमी की हालत ऐसी होती जा रही है, जैसी पिलपिले आम की होती है। हालांकि आदमी स्वस्थ्य और प्रसन्नचित रहने के लिए हर मुमकिन कोशिशें कर रहा है। लेकिन जैसे ढाक के हमेशा तीन ही पात होते हैं, वैसे ही आदमी के प्रयास के भी परिणाम सामने आ रहे हैं। सुबह उठकर जागिंग करने से लेकर ताश की महफिल सजाने, दफ्तर में खरार्टे भरने, देर रात तक टीवी देखने अथवा दोस्तों के साथ गपशप लड़ाने और जी हल्का करने लिए राजनीति पर बहस करने तथा राजनीतिज्ञों को भला-बुरा कहकर मन की भड़ास निकालने तक, हर प्रयास करके देख चुका है आदमी। लेकिन हालत है कि दिन पर दिन गिरती ही जा रही है और बजाए स्वस्थ्य होने के वह और मुर्झाता जा रहा है।
आदमी की इस हालत के कई कारण हो सकते हैं। मसलन-उसकी संताने ज्यादा हो। पत्नी नापसंद हो उसे। बास चिड़चिड़ा हो अथवा उसकी पगार कम हो। आदि-इत्यादि। टेंशन यह नहीं कि कारण क्या है। टेंशन तो यह है कि आदमी परेशान है। और परेशान आदमी देश की प्रगति में कितना सहायक हो सकता है, यह अतिरिक्त टेंशन है। इसलिए सरकार भी आदमी को परेशानी से निजात दिलाने की चिंता में घुली जा रही है। यानि एक टेंशन यह भी है कि सरकार खुद भी परेशान है। और हो भी क्यों न? सतत बढ़ती जा रही जनसंख्या की मार से पहले ही दोहरी हो चुकी सरकार आदमी को पेरशानी से नजात दिलाने के उपाय अभी सोच ही रही होती है कि उत्ती देर में आदमी ढेरों और बच्चे पैदा करके उसके सामने कुढ़ो देता है। अब सरकार क्या करें? माना कि वह माई-बाप है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि वह हमेशा ढील ही देती रहे। इसलिए गाहे ब-गाहे वह कुछ कड़े फैसले भी लेती है।अगर गौर करें तो सरकार की परेशानी का कारण नाजायज कतई नहीं है। जब हर बार किसी समस्या के निदान के लिए उठाए गए कदम विफल हो जाएं तो आदमी का खीजना और परेशान होना जायज है। यही सरकार के साथ हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। एक ओर आम जनता को लोटा-थाली देकर नसबंदी के लिए प्रेरित कर रही है तो दूसरी ओर ज्यादा बच्चों वाले अधिकारियों, कर्मचारियों को पदच्युत कर रही है अथवा पदच्युत करने की धमकी दे रही है। लेकिन आदमी भी पूरा आदमी है। कमबख्त! कुछ समझने की कोशिश ही नहीं करता।
अब नीमच के उस गांव को ही लें, जहां की महिला सरपंच को सरकार ने सिर्फ इसलिए पदच्युत कर दिया था, क्योंकि पद में रहते हुए वह तीसरे बच्चे की अम्मा बन गई थी लेकिन आदमी को सरकार का यह कदम रास न आया और विरोध स्वरूप उसने एक ऐसी महिला को सरपंच चुन लिया जो पहले से ही छह बच्चों की अम्मा थी। ऐसा ही एक वाकेआ आंध्र के एक गांव का है। वहां सरकार ने नसबंदी का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, अधिकारी जब कूदकर उस लक्ष्य को जा लपके तो आदमी हाय-तौबा मचाने लगा। कहता है कि लक्ष्य तक पहुंचने की हड़बड़ी में अधिकारियों ने उन आदमियों की भी नसबंदी कर दी जो सही मायनों में आदमी नहीं थे। इनमें से ज्यातर या तो 50-60 वर्ष की आयु के थे या विकलांग थे और बच्चे पैदा करने के योग्य ही नहीं थे। कुछ आदमी ऐसे भी थे जो पहले से ही नसबंदीशुदा थे। अब आदमी क्या जाने की माई-बाप को टेंशन क्या है। एक टेंशन तो यह भी है कि जनसंख्या के मामले में चीन के साथ होड़ करने वाला अपना देश पदकों के मामले में हर बाद इतना फिसड्डी क्यों साबित हो जाता है। एक अरब से अधिक वाले इस देश की झोली में हर बार सिर्फ एक-दो पदक ही क्यों हाथ आता है। व्हाट अ टेंशन यार।
और एक टेंशन तो अभीच शुरू हुआ है। ये जो नया टेंशन है, बिल्कुल लेटेस्ट और नेशनालाइज्ड टेंशन है ये। और ये जो नेशनालाइज्ड टेंशन है, यह पहले वाले टेंशन से भी ज्यादा जानलेवा है। पहले तो सिर्फ यही टेंशन थी कि आबादी छलांग लगा रही है। अब यह टेंशन है कि आबादी एक समुदाय विशेष की ही क्यों छलांग लगा रही है। इसलिए धर्म के कुछ तथाकथित ठेकेदार अपने समुदाय से ज्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान कर रहे हैं। सरकार कहती है- ‘हम दो, हमारे दो।’ ठेकदार कह रहे हैं-‘हम दो, हमारे चार हों।’ नहीं तो संतुलन बिगड जाएगा। इसलिए और पैदा करो। जानवरों की तरह करो। मगर करो।
तो ऐसा है। भईया।
अगर यही हाल रहा, तो देखना एक समय ऐसा भी आएगा जब आदमी का बच्चा भी पैदा होते ही जानवर के बच्चे की तरह कुंलाचें मारने लगेगा। देश की स्थिति पर गौर करते हुए उसके भी मन में प्रतिस्पर्धा की भावना जागृत होगी। क्योंकि प्रतिस्पर्धा की भावना में ही वह पैदा होगा। इसलिए यह सोचकर कि जितने दिनों में वह चलना सीखेगा, उतने दिनों में तो लाखों और बच्चे जन्म ले चुकेंगे, इसलिए पैदा होते ही वह दौड़ने लगेगा।
और अब तो हद ही हो गई भैनजी। देख लो, बोतलों में भी बच्चे ढाले जाने लगे हैं। जैसे इंसान-इंसान न हुआ कोई प्रोडक्ट हो गया। इसलिए कांपीटीशन बढ़ रहा है। तो देख लेना, आदमी का बच्चा भी पैदा होते ही दौड़ने लगेगा। जैसे जानवर का बच्चा दौड़ता है। लड़खड़ाते हुए ही सहीं। जैसे देश दौड़ रहा है। जनसंख्या कम करने के सभी प्रयासों को धत्ता बताते हुए जैसे जनसंख्या छलांग लगा रही है। जबकि दुनिया में जनसंख्या नीति बनाने वाला भारत ही पहला देश है। फिर भी यहां की जनसंख्या एक अरब को पार कर गई बताते हैं। हमसे तो अपने बारह भी ठीक तरह से गिने नहीं जाते हैं। यार लोग इतनी बड़ी संख्या का ठीक-ठीक हिसाब कैसे लगा लेते हैं, अपुन यही सोच कर टेंस हो जाते हैं।
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