रमदान अल मुबारक, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
"अल्लाह ताअला फरमाता है: मेरा बंदा किसी और चीज़ के जरिये मुझ से इतना करीब नहीं होता, जितना फर्ज़ इबादत के जरिये होता है।"
- सहीह बुखारी
अल्लाह का महीना है रमजान : डॉ. इस्माइल
बीएसपी के रिटायर्ड कर्मी डॉ. सैय्यद ईस्माइल ने रमजान की फजीलत बयान करते हुए कहा- अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद 000 ने फरमाया कि शाबान मेरा महीना और रमजान अल्लाह का महीना है। शेखुल हदीस हजरत मौलाना जकरिया रहमतुल्लाह ने फजाईले रमजान में लिखा है, इस महीने में अल्लाह बंदो की नेकी को बढा देता है।
एक फर्ज सत्तर फर्जों के बराबर हो जाते हैं। इसलिए बंदों को नेकी के तरफ तेजी से कदम बढ़ाना चाहिए। अल्लाह कहता है, हर इबादत का बदला फरिश्तों के जरिए से मैं देता हूं लेकिन रोज़े का बदला मैं खुद देता हूं। डॉ. सैयद इस्माइल ने कहा कि रोजा बुराई से रोकता है, ये रहमत, बरकत और माफी कराने का महीना है।
अपने गुनाहों से तौबा कर अल्लाह को राजी करें। उन्होंने कहा कि रोजा सिर्फ भूखे और प्यासे रहने का नाम नहीं है बल्कि रोज़े के मकसद से इंसान अपने अंदर गुस्सा, झूठ, फरेब, बुरे काम छोड़कर कर संयम, यकजहती और अल्लाह का डर दिलों में ला सके, क्योंकि रोजा अल्लाह का हुक्म है।
भूख और प्यास का एहसास जब हमें होता है तो इसकी अहमियत पता चलती है कि गरीबों और मोहताजों की भूख-प्यास का भी हमें खयाल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि रमजान को मोहब्बत और खुलूस का महीना भी कहा गया है। हमेशा सब्र का दामन थामे रखना चाहिए। अपनी जिंदगी को अल्लाह की राह में लगा देना चाहिए।
एक फर्ज सत्तर फर्जों के बराबर हो जाते हैं। इसलिए बंदों को नेकी के तरफ तेजी से कदम बढ़ाना चाहिए। अल्लाह कहता है, हर इबादत का बदला फरिश्तों के जरिए से मैं देता हूं लेकिन रोज़े का बदला मैं खुद देता हूं। डॉ. सैयद इस्माइल ने कहा कि रोजा बुराई से रोकता है, ये रहमत, बरकत और माफी कराने का महीना है।
अपने गुनाहों से तौबा कर अल्लाह को राजी करें। उन्होंने कहा कि रोजा सिर्फ भूखे और प्यासे रहने का नाम नहीं है बल्कि रोज़े के मकसद से इंसान अपने अंदर गुस्सा, झूठ, फरेब, बुरे काम छोड़कर कर संयम, यकजहती और अल्लाह का डर दिलों में ला सके, क्योंकि रोजा अल्लाह का हुक्म है।
मुहब्बत और खुलूस का महीना है रमजान : हैदर
जामा मस्जिद सेक्टर-6 के इमाम खतीब मौलाना हाफिज इकबाल अंजुम हैदर ने कहा कि रमजान की बहुत सी फजीलत हैं और हमें यह सब्र का पैगाम देता है। यह पाकीजा महीना हमें उन गरीबों और मोहताजों के बारे में एहसास दिलाता है, जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती।भूख और प्यास का एहसास जब हमें होता है तो इसकी अहमियत पता चलती है कि गरीबों और मोहताजों की भूख-प्यास का भी हमें खयाल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि रमजान को मोहब्बत और खुलूस का महीना भी कहा गया है। हमेशा सब्र का दामन थामे रखना चाहिए। अपनी जिंदगी को अल्लाह की राह में लगा देना चाहिए।
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