अमन की दुआओं के लिए खास इबादत एतकाफ पर बैठे लोग, शबे कद्र की तैयारियां शुरू

रमदान अल मुबारक, 1446 हिजरी 

   फरमाने रसूल ﷺ   

"अल्लाह ताअला फरमाता है: मेरा बंदा फर्ज़ नमाज़ अदा करने के बाद नफिल इबादत करके मुझसे इतना नज़दीक हो जाता के मैं उससे मोहब्बत करने लग जाता हूँ।"

- सहीह बुख़ारी


माहे रमजान की विदाई के दौर में जारी है इबादतों के साथ इफ्तार पार्टी का सिलसिला

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✅ नई तहरीक : भिलाई

माहे रमजान की विदाई के इस दौर में शहर की तमाम मस्जिदों और घरों में खास इबादत का सिलसिला जारी है। रमजान के इस आखिरी अशरे में शहर में अमन व हिफाजत की दुआओं के साथ लोग मस्जिदों और घरों में खास इबादत एतकाफ के लिए बैठ गए हैं। दुआओं का सिलसिला जारी है, वहीं जगह-जगह इफ्तार पार्टी भी मुनाकिद की जा रही है। एतकाफ पर बैठे लोग अब आखिरी रोजे पर चांद देखने के बाद अपनी इबादत पूरी कर घर लौटेंगे।
इस सिलसिले में इस्लामिक मामलों के जानकार व खुर्सीपार निवासी सैयद असलम ने बताया कि रमज़ान के आखिरी दस दिनो में 21वी शब (रात) से चांद देखने तक मस्जिदों में एतकाफ शुरू होता है। हज़रत मुहम्मद 000 वैसे पूरे रमजान में इबादत का बहुत ही ख़ास एहतेमाम फरमाया करते थे और शबे कद्र की तलाश में एतकाफ फरमाया करते थे। शेखुल हदीस हजरत मौलाना जकरिया रहमतुल्लाह ने फजाईले रमजान मुबारक में एतकाफ के बारे में 7 हदीस नकल करते हुए लिखा है, एतकाफ का असल मकसद अल्लाह को मनाना है।
    हाजी एमएच सिद्दीकी बताते हैं-एतकाफ कहते हैं मस्जिद में नीयत कर ठहरने को। इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह के नजदीक इसकी तीन किस्में हैं, एक वाजिब, जो मन्नत वगैरह मानने पर की जाती है, दूसरी सुन्नत है, जो रमजान मुबारक के आखिरी अशरा में नबी-ए-करीम 000 की आदत मुबारक थी और तीसरी नफल है।
    दारूल कजा, भिलाई के शहर काजी मुफ्ती मोहम्मद सोहेल ने एतकाफ करने वालों को इस सिलसिले में उसके नियम कानून बताए कि सबसे अच्छी जगह मक्का मुकर्रम, उसके बाद मस्जिद नबवी 000 मदीना और तीसरा बैतुल मुक़द्दस और उसके बाद अपने शहर की जामा मस्जिद और फिर मोहल्ले की मस्जिदों में बेहतर है। इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह के नजदीक  एतकाफ के लिए जिस मस्जिद में पांच वक्त नमाज अदा की जाए, वो शर्त है। मोतकिफ की मिसाल उस शख्स की है, जो किसी के दर पर जा पड़े, जब तक उसकी दरख्वास्त कबूल ना हो, इसलिए जब कोई शख्स दुनिया से एक तरफ कर अल्लाह के दर पर पड़ जाता है तो करीम जात बख़्शिश के बहाने ढूंढती है और माफ कर देती है।

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    हाजी सिद्दीकी ने कहा कि एतकाफ का बहुत सवाब है। एतकाफ करने वाले का सोना, जागना, बैठना, खाना पीना, सब इबादत में शामिल होता है। एतकाफ का एक मकसद शबे कद्र की तलाश भी है। मोहल्ले वालों के तरफ़ से कोई एक शख्स भी एतकाफ पर बैठे तो सबकी तरफ से अदा हो जाता है। मर्दों के लिए सबसे बेहतर जगह मस्जिद है जबकि औरतों के लिए उनका घर, जहां वे नमाज़ अदा करतीं हैं। इस दौरान सभी के लिए अल्लाह से रहमत, बरकत ओर अमन की दुआ करनी चाहिए ताकि दुनिया में अमन-चैन और खुशहाली हासिल हो।

शबे कद्र आज और अलविदा जुमा कल

    माहे रमजान में खास इबादत की रात शबे कद्र 27 मार्च को है। इस रोज शहर की तमाम मस्जिदों में तरावीह की नमाज में पढ़ा गया कुरआन मुकम्मल होने पर दुआएं की जाएंगी। वहीं तरावीह पढ़ाने वाले हाफिजों, मस्जिद के इमामों और मुअज्जिनों सहित तमाम लोगों का इस्तकबाल किया जाएगा। लोग मस्जिदों में रात भर ठहर कर इबादतें करेंगे। घरों में भी लोग रात भर इबादत करेंगे। शबे कद्र को देखते हुए शहर की तमाम मस्जिदों में खास इंतजाम किए गए हैं। इसी तरह माहे रमजान का आखिरी जुमा 28 मार्च को होगा। जिसमें जुमे की नमाज में दोपहर में बड़ी तादाद में लोग मस्जिदों में जुटेंगे। इसे देखते हुए खास तैयारियां मस्जिद कमेटियों की ओर से की जा रही है। 

तमाम मस्जिदों में नमाजी बैठे हैं एतकाफ पर

शहर की तमाम मस्जिदों में लोग एतकाफ पर बैठे हैं। इनमें जामा मस्जिद सेक्टर-6 में कुल 18 इबादत गुजार दिन-रात इबादत में लगे हैं। इनमें ज्यादातर नौजवान हैं। इसी तरह मस्जिद हजरत बिलाल हुडको में 4, गौसिया मस्जिद कैंप-1 में 2, मस्जिद शेरे खुदा हाउसिंग बोर्ड में 1, मस्जिद अहले सुन्नत वल जमाअत रिसाली सेक्टर में 1 और रूआबांधा मदरसा में 1 नमाजी एतकाफ पर बैठे हैं। शहर की दीगर मस्जिदों में भी लोग एतकाफ पर बैठ कर इबादत कर रहे हैं।

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