आओ इसका पता लगाएं (व्यंग्य)

व्यंग्य

आओ इसका पता लगाएं  (व्यंग्य)

सईद खान 

आओ इसका पता लगाएं

    बच्चों! पिछले अध्याय में तुम समाज का विस्तृत अध्ययन कर चुके हो। और यह जान चुके हो कि भिन्न-भिन्न प्राणियों के समूह को समाज कहते हैं। इस अध्याय में हम समाज के कुछ विशेष प्राणियों के स्वभाव और रूचि के विषय में आगे पढ़ेंगे जिससे किसी अवसर पर यदि तुम्हें उनसे डील करनी पड़े तो असुविधा न हो।


खुद अनुभव करके दखो (1)

    चुनाव के पश्चात नवनिर्वाचित सांसद के बंगले में जाओ। कल्पना करो कि चुनाव से पूर्व तुमने इस सांसद को जिताने के लिए थोड़ी मेहतन भी की थी और चुनाव प्रचार के दौरान तुमने उसके साथ अपने वार्ड में जनसंपर्क भी किया था। अनेक अवसर पर बड़ी आत्मीयता से उसने तुम्हारे कंधे पर हाथ भी धरा था और किसी अवसर पर उसने तुम्हारे होने वाले पुत्र को नौकरी दिलाने का आश्वासन भी दिया था। सो इसी संबंध में चर्चा के लिए तुम वहां पहुंचे हो।
    बंगले में बहुत भीड़ है। तुम्हारी तरह अन्य बेवकूफ भी वहां जमा है। सांसद अंदर डइंगरूम में अपने विशेष प्यादों से घिरा जलपान कर रहा है। तुम जैसे-तैसे डइंगरूम के दरवाजे तक पहुंचने में सफल हो जाते हो। तुम्हें यह गुमान रहता है कि सांसद तुम्हें देखते ही अंदर बुलवा लेगा। लेकिन वह तुम्हें देखते ही यों नजरें फेर लेता है, जैसे तुम्हें पहचानता ही नहीं। उसके नयनों की भाषा समझते ही तुम्हें अपनी औकात समझ लेनी चाहिए। इसके बावजूद भी यदि तुम चुनाव से पूर्व की उसके द्वारा बरती गई घनिष्टता के मायाजाल में फंसे रहे तो अपना अपमान निश्चित समझो और ‘और रमेश। कैसे हो?  क्या हाल है?  घर में सब कुशल मंगल तो है न?  कोई कष्ट तो नहीं है...?’ जैसी मृदुवाणी की जगह अब (सांसद बनते ही) ‘तुम लोग यार, आदमी हो या जानवर?  कोई बात समझते ही नहीं। जब देखो, मुंह उठाए चले आते हो...।’  जैसा कटुवचन सुनना पड़ सकता है। सो यह जान लो।


तुम्हारी आस क्यों टूटती है?

आओ इसका पता लगाएं

    चुनाव का उम्मीदवार विशेष दर्जे का सामाजिक प्राणी होता है। चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाला व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकता है। इसलिए उसके स्वभाव में कटुता संभावित होती है। और, ‘करेला नीम चढ़ा’ की तर्ज पर विजयी होते ही स्वभाव से वह और कटु हो जाता है। किंतु चुनाव संपन्न होने तक वह सहृदय होने का सफल नाटक करता है। जैसा नाटक उसके बाप-दादा करते आ रहे हैं। जिससे तुम धोका खा जाते हो। जैसा धोखा तुम्हारे बाप-दादा खाते आ रहे हैं।


खुद अनुभव करके देखो (2)

    किसी दिन अपने क्षेत्र के थाने में जाओ। कल्पना करो कि थाने में तुम्हें अपने साथ हुई चोरी की रपट दर्ज करवानी है। यह कल्पना तुम थाने पहुचंने से पहले ही कर लेना। यदि थाने में प्रविष्ठ होकर भी तुम कल्पना लोक में विचरते रहे, तो तुम्हारी यह क्रिया थानेदार को रूष्ट कर सकती है। वैसे भी, थाने में प्रविष्ठ होते ही वहां के वातावरण से तुम्हारी घिग्घी पहले ही बंध जाएगी। और थोड़ी-थोड़ी देर में थानेदार द्वारा हवालात की ओर मुंह करके ‘क्यों रे मादर...।’  जैसा कुछ अप्रिय वाक्य सुनकर और उसे अपनी ओर प्रश्नवाचक नजरों से घूरता पाकर तुम्हारा रहा-सहा हौसला भी पस्त हो जाएगा। ध्यान रहे कि उच्च शिक्षित, सभ्य और सु-संस्कारित होने के अपने दंभ को थाने में रहने की अवधि तक तजे रहना और थानेदार से ाआइये बैठिए’ और ‘मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं जनाब ?’ जैसी सहृदयता की आस कदापि न करना। साथ ही यह देखकर खुद को अपमानित भी महसूस मत करना कि तुम्हारे मुहल्ले का सटोरिया, जिसे तुम अब तक लुच्चा और लफंगा समझते आए हो, वह कितनी शान से थानेदार के सामने बैठा जुगाली कर रहा है और थानेदार तुमसे बैठने के लिए भी नहीं कह रहा है।
    रपट दर्ज हो जाने के बाद हवलदार यदि चाय-पानी का तकादा करे, तो उसे यह दलील मत देना कि घर में हुई चोरी से तुम पहले ही बर्बाद हो चुके हो। इसलिए हवलदार को देने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं है। यह दलील बेतुकी होगी। भला तुम्हारे घर में हुई चोरी में हवलदार का क्या दोष कि तुम उसे सूखा ही सूखा निपटाने चले आए? सो बगैर चूं-चां किए सौ-दो-सौ रुपए रोजनामचे के बीच दबा देना। यह ध्यान रखना कि जब भी थाने जाना हो, जेब में कुछ रेजगारी अवश्य रख लेना। यह नियम है। चाहे तुम अपने साथ हुई मारपीट की रपट दर्ज करवाने लहू-लुहान अवस्था में ही थाने क्यों न जा रहे हो।


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कहानी


ऐसा क्यों होता है?

आओ इसका पता लगाएं

    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक क्रिया-कलाप सुचारू रूप से सम्पन्न होता रहे, इस हेतु कुछ विधान बनाए गए हैं। पुलिसिया कार्यप्रणाली इसी विधान का एक आवश्यक अंग है। लेकिन अनुभव और अध्ययन से ज्ञात होता है कि ज्यों ही कोई सामाजिक प्राणी इस अंग से जुड़ता है, वह स्वयं असामाजिक हो जाता है। और समाज के शेष सभी प्राणियों को वह एक ही डंडे से हांकता है। यह डंडा भी दरअसल उसे विधान से प्राप्त होता है। साथ ही इस अंग को संगठित एवं सुचारू रूप से संपादित करने के लिए जो वर्दी उसे प्रदान की जाती है, उसे धारण करते ही यह अंग निर्दयी और कुछ-कुछ पशुतुल्य हो जाता है। बात-बात पर उसके मुंह से कांटे झरते हैं। वह, यह मानकर चलता है कि वह क्षेत्र विशेष का वदीर्धारी गुंडा है। इसलिए उसके व्यवहार से गुंडाई क्षार स्वमेव झड़ते रहते हैं। फलस्वरूप वह सभ्य लोगों से भी वैसे ही पेश आता है, जैसा गुंडो से।
    सटोरिए का उसके सामने बैठकर बड़ी शान से जुगाली करना, जिसे देखकर तुम खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे, व्यवहारिक दृष्टिकोण से ‘म्यूचुअल अंडर स्टैंडिंग’ के तहत संभव है।
    तो ध्यान रहे। जब भी थाने जाना हो, अपमान सहने की पूर्व तैयारी कर लेना और जेब में रेजगारी धरना मत भूलना। यह अघोषित विधान है और दुनिया का कोई अर्थ शास्त्र, समाज शास्त्र, विज्ञान, भूगोल, इतिहास और गणित का कोई सूत्र इस विधान पर लागू नहीं होता।


अभ्यास के लिए प्रश्न

निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखो

    (1) चुनाव लड़ रहे व्यक्ति के स्वभाव में विजयी होने के बाद आने वाले ऐतिहासिक परिवर्तन का कारण स्पष्ट करो।
    (2) परस्पर विरोधी होने के बावजूद थानेदार और सटोरिए की घनिष्टता किन कारणों से संभव है।


सही जोड़ी बनाओ

जनता                 अमानुष
पुलिस                 मूर्ख
अधिकारी वर्ग धूर्त
नेता                 भ्रष्ट
चिकित्सक         रंगदार


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